अज्ञान- निवृत्ति
शिक्षण-विधि-सोपान
अज्ञान- निवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति का लोकव्यवहार का जीवन अज्ञान का जीवन है, जो कि व्यक्ति के भ्रान्ति-स्वरूप चेतन अहंकार द्वारा पोषित है ।
शास्त्र प्रमाण व्यक्ति के ज्ञान-स्वरूप आत्मा और भ्रान्ति-स्वरूप-चेतन अहंकार के
भेद को स्पष्ट रूप से दर्शन करा देते हैं । जब व्यक्ति उपरोक्त वर्णित भेद का
साक्षात् दर्शन कर लेता है, तो सहज ही वह भ्रान्ति का त्याग करके
अपने स्वरूप में स्थापित हो जाता है । ऐसी स्थिति प्राप्त हो जाने पर भी व्यक्ति
इस लोकव्यवहार के सन्सार में जीवनयापन करते हुये भी, उस भ्रान्ति
कर्तापन और भोग्तापन से विरक्त हो जाता है । सन्सार के सुख-दुख से वह वंचित नहीं
होगा, परन्तु उसका उनके साथ राग-द्वेष रूपी
संलग्नता क्षीण हो जाती है । भगवद्गीता के उपदेश, ब्रम्हसूत्र के
उपदेश, समस्त उपनिषदों के उपदेश उपरोक्त स्थिति
प्राप्त करने का पथ निर्दिष्ट करते हैं । यह माया-कल्पित-जगत् की उत्पत्ति का
निमित्त जीवों के संचित कर्म-फलों का भोग कराना ही होता है, इसलिये अज्ञान की निवृत्ति हो जाने पर भी, जिन संचित
कर्म-फलों के भोग के लिये उसे वर्तमान जीवन मिला है, उनके क्षीण होने
पर्यन्त इस लोकव्यवहार के जीवन में उन्हे भोगना ही भोगना है, परन्तु अज्ञान का निवारण होने के फलसे उसका कर्तापन और भोक्तापन क्षीण
हो जाने से, उसे पुन: दूसरा जन्म नहीं मिलेगा, क्योंकि कारण-शरीर का स्वामी अहंकार ही समाप्त हो गया, तो पुन:-जन्म होगा किसका ? यह मोक्ष की स्थित है । .....
क्रमश:
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