ज्ञान की प्राप्ति
शिक्षण-विधि-सोपान
ज्ञान की प्राप्ति आपकी आत्मा स्वयं ज्ञान स्वरूप है । आत्मा आपको नित्य प्राप्त है ।
इसलिये ज्ञान की प्राप्ति कोई उपलब्धि रूप में नहीं है, अपितु ज्ञान विषयक अज्ञान की निवृत्ति है । प्रश्न उठेगा कि जब नित्य
प्राप्त आत्मा स्वयं ज्ञानस्वरूप है, तो अज्ञान का मूल कहां है । उत्तर है कि
अज्ञान का मूल अज्ञान में ही होता है । ज्ञान की दृष्टि से अज्ञान का तो कोई
अस्तित्व होता ही नहीं है । प्रश्न उठेगा कि अज्ञान की उत्पत्ति कब हुई है । उत्तर
है कि अज्ञान सदैव अनादिकालीन ही होता है । उदाहरण के लिये यदि आपको संस्कृत भाषा
का अज्ञान है, तो यह अज्ञान सदैव से ही है, ऐसा तो नहीं है कि एक वर्ष पूर्व संस्कृत भाषा का ज्ञान था और अब आपको संस्कृत
भाषा का अज्ञान है । प्रत्येक व्यक्ति को अपने आत्म-स्वरूप का अज्ञान सदैव से है, अनादिकाल से है, यह माया की अद्भुद लीला का फल है ।
इसलिये ज्ञान-प्राप्ति का अभिप्राय इतना ही होता है, कि व्यक्ति को
अपनी ज्ञान-स्वरूप आत्मा की अनन्तता का अज्ञान है, उस अज्ञान की
निवृत्ति ही ज्ञान की प्राप्ति है, क्योंकि आपकी ज्ञान-स्वरूप आत्मा तो आपको
नित्य प्राप्त है । ...... क्रमश:
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