देश-काल-मस्तिष्क
शिक्षण-विधि-सोपान
देश-काल-मस्तिष्क देश अर्थात् आकाश का विस्तार व्यापक है, यहाँ तक कि कोई भी
व्यक्ति इसकी व्यापकता का साक्षात् नहीं कर सकता है । आकाश अथवा देश की व्यापकता
की अभिव्यक्ति मात्र मानसिक कल्पना है । संकोच अथवा विस्तार यह ब्रम्ह का स्वभाव
नहीं है । इसी प्रकार काल अर्थात् समय को नित्य कहा जाता है । काल की नित्यता
प्रवाही नित्यता है । भूत-काल, वर्तमान-काल, भविष्य-काल यह काल का प्रवाही स्वरूप है । इसी प्रवाही काल में उसकी
नित्यता भी प्रवाही नित्यता है । काल की नित्यता का साक्षात् सम्भव नहीं है । काल
को देखने के लिये मनुष्य उसके टुकडे करता है, घडी-पल-ऋतुयें-मास-संवतसर आदि परन्तु काल
का प्रत्यक्ष सम्भव नहीं है । शास्त्रों में ब्रम्ह को अनन्त उपदेश किया गया है ।
इसलिये यह संकोच-विस्तार वाला देश और प्रवाही काल यह दोनो ही उस ब्रम्ह की अनन्तता
के संकोचक नहीं हो सकते हैं । ब्रम्ह देश-काल का अधिष्ठान है । इसी प्रकार
वस्तुरूप जगत् के प्रकरण में कार्य-कारण भाव को ब्रम्ह पर आरोपित किया जाता है ।
परन्तु नाम-रूप-जगत् का कार्य-कारणत्व भी ब्रम्ह की अनन्तता का संकोचक नहीं हो
सकता है । ब्रम्ह में देश-काल-कार्य-कारणत्व का अत्यन्ताभाव है । देश में संकोच
विस्तार, काल का प्रवाही नित्यत्व, और नाम-रूप-जगत् के पदार्थों का कार्य-कारणत्व-भाव केवल मानसिक कल्पना
है, इनका स्पर्ष भी ब्रम्ह में नहीं है । ब्रम्ह तो शाश्वत्-अद्वय-असंग-तत्व
है । वह ज्ञान स्वरूप है, आपकी आत्मा है । ...... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें