विवर्ती उपादानिता


शिक्षण-विधि-सोपान
विवर्ती उपादानिता ब्रम्ह किसी भी दशा में बीज़ नहीं बन सकता है । बीज़ बनने के लिये उसमें सन्सकार होने चाहिये, परन्तु ब्रम्ह में कोई सन्सकारिता सम्भव नहीं है । बीज़ बनने के लिये विकारी उसका स्वभाव होना चाहिये, परन्तु ब्रम्ह निर्विकार है । बीज़ बनने के लिये उसमें उपादानिता होनी चाहिये, परन्तु ब्रम्ह में उपादानिता सम्भव नहीं है । उपरोक्तानुसार बीज़ बनने के लिये वाँक्षित समस्त अपेक्षाये ब्रम्ह में अत्यन्ताभाव होने के कारण, ब्रम्ह बीज़ नहीं बन सकता है । यह तो शास्त्रीय विवेचना है । फिरभी ब्रम्ह पर सन्सार वृक्ष का बीज़ होना आरोपित किया जाता है । इतना बडा फैला हुआ सन्सार वृक्ष किसी साधारण बीज़ से सम्भव हुआ नहीं है । इसलिये इस सन्सार वृक्ष का बीज़ होना ब्रम्ह पर आरोपित किया जाता है । यह तार्किकों का मत है । अद्वैत वेदान्त इसकी व्याख्या इस प्रकार करता है, जब तक व्यक्ति अज्ञान के अधिकरण में है तब तक उसके लिये ब्रम्ह इस सन्सार वृक्ष का बीज़ है, परन्तु जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान हो जाता है, तो उस ज्ञानी के लिये यह अनुभवगम्य जगत् ही मिथ्या हो जाता है, इसलिये बीज़त्व का प्रश्न ही निर्मूल हो जाता है । इसे ही ब्रम्ह का विवर्ती उपादानिता कहा जाता है । ब्रम्ह का बीज़त्व उसकी माया-शक्ति है । ...... क्रमश:

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