शब्दात्मक जगत्


शिक्षण-विधि-सोपान
शब्दात्मक जगत् पदार्थ रूपात्मक है । उनका ज्ञान शब्दात्मक हैं । पदार्थ जगत् है । शब्द जिह्वा हैं । ज्ञानेन्द्रियां सूक्ष्म हैं, ज्ञानेन्द्रियों का स्थूल रूप जगत् है । मन इन्द्रियों से सूक्ष्म है । इन्द्रियां मन का स्थूल हैं । मन ही जगत् के रूप में भासित हो रहा है । ॐ प्रणव है । ॐ सम्पूर्ण जगत् को धारण किये हुये है । प्रणव ध्वनि का आभाव, शान्ति है । ध्वनि की पुनरावृत्ति सम्भव है । शान्ति की पुनरावृत्ति सम्भव नहीं है । शान्ति सत् स्वरूप है । मन में उठने वाले विक्षेप नैसर्गिक नहीं हैं, अपितु सृजित हैं । जिसका सृजन है, उसका अन्त है । यह माया लोक है । प्रकृति विकारात्मक है । पारमार्थिक निर्विकार है । शान्ति पारमार्थिक का स्वभाव है । इसमें कोई गति सम्भव नहीं है । ..... क्रमश:     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म