सविकल्प निर्विकल्प


शिक्षण-विधि-सोपान
सविकल्प निर्विकल्प कार्य कारण से सिद्ध होता है । कारण से कार्य सिद्ध होता है । इस प्रकार कार्य, कारण के आश्रित है, कारण कार्य के आश्रित है । यह सापेक्षता है । मस्तिष्क द्वारा दृष्य जगत् के वस्तु रूपों का ज्ञान दो प्रकार से होता है, एक- वस्तु है, दो- वस्तु नहीं है । वस्तु के होने का ज्ञान है, और वस्तु के अभाव का ज्ञान है । यह विकल्प है । यह मस्तिष्क का सापेक्षता का लोक है । “मैं हूँ” इसका कोई विकल्प सम्भव नहीं है । कैसे ? क्या कोई भी अपने न होने का अनुभव कर सकता है । यह निर्विकल्प है । विकल्पों का लोक माया लोक है । निर्विकल्प पारमार्थिक सत्य है । इस निर्विकल्प आत्मा के आश्रय पर ही, विकल्पों की गति होती है । पारमार्थिक कार्य-कारण से विलक्षण है, यद्यपि कि विकल्पों की उत्पत्ति इस निर्विकल्प के आश्रय से होती है । ..... क्रमश:

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