तीन रचनागत त्रुटियाँ


शिक्षण-विधि-सोपान
तीन रचनागत त्रुटियाँ माया शक्ति ने जो मस्तिष्क का सृजन जीव प्रपंचों के लिये किया है, उसमें तीन त्रुटियाँ नामत: एक- मल, दो- विक्षेप, तीन- अज्ञान को मस्तिष्क की संरचना में पिरो दिया है । उपरोक्त वर्णित त्रुटियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है, एक- मल, व्यक्ति का मस्तिष्क “संकल्प-विकल्प” की स्थिति में रहता है, यह करे कि न करे, यह मेरे लिये अनुकूल है नहीं है आदि यह मस्तिष्क का संकल्प-विकल्प है, यह मस्तिष्क का दोष है, यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है, दो- विक्षेप, मस्तिष्क चंचल होता है, इसमें गति करने वाली वृत्तियों का प्रवाह प्रचुर रहता है, इसके फल से व्यक्ति का मस्तिष्क किसी एक प्रकरण पर केन्द्रित नहीं हो पाता है, यह भी प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है, तीन- अज्ञान, जैसा की शुरू से बताते आये है कि व्यक्ति अपने स्वरूप अर्थात् आत्म-स्वरूप से अनभिज्ञ रहता है, यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ होता है, यह किसी एक व्यक्ति का दोष नहीं है । उपरोक्त वर्णित तीन मूलभूत मस्तिष्क की त्रुटियों के निवारण के लिये पुरुषार्थ करना होता है । श्रुति-भगवती के चारो वेदों में तीन-तीन-काण्ड हैं, नामत: कर्म-काण्ड, उपासन-काण्ड, ज्ञान-काण्ड हैं । कर्म-काण्ड के पुरुषार्थ से मस्तिष्क के पहले दोष, मल का निवारण होता है । उपासना-काण्ड के पुरुषार्थ से व्यक्ति के मस्तिष्क के विक्षेप दोष का निवारण होता है । ज्ञानकाण्ड के पुरुषार्थ से अज्ञान का नाश होता है । उपरोक्त वर्णित तीनो स्थितियाँ उत्तरोत्तर क्रम से होती हैं । कर्म-काण्ड से मस्तिष्क पवित्र होता है । उपासना-काण्ड से मस्तिष्क सूक्ष्म-ज्ञान के लिये योग्य पात्र बनता है । ज्ञान की स्थिति मोक्ष है । जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है । ...... क्रमश:  

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