अज्ञान
शिक्षण-विधि-सोपान
अज्ञान आत्मा और ब्रम्ह दो नाम हैं, परन्तु
तत्व एक है, इस तथ्य की अनभिज्ञता अज्ञान कहा जाता है ।
भगवान आदिशंकर ब्रम्हसूत्र के भाष्य में लिखते हैं कि प्राण की जीव शरीर में
स्थापना आत्मा के आश्रय द्वारा ही सम्भव होती है । प्राण क्रियाशील आत्मा के आश्रय
से होता है । पद-परिचय-सोपान में बताया गया था कि प्राण में उन्नीस अवयव नामत:
पंच-प्राण, पंच-ज्ञानेन्द्रियाँ,
पंच-कर्मेंन्द्रियाँ, मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार युक्त करण
मस्तिष्क, निहित होते हैं । जीव का प्राण
समष्टि-प्राण-हिरण्यगर्भ का ही अंश है । हिरण्यगर्भ माया-कल्पित-सृजन है ।
हिरण्यगर्भ पर्यन्त माया-कल्पित-जगत् है । जीव शरीर में प्राण शक्ति आत्मा के
आश्रय से ही क्रियाशील होती है । परन्तु जीव कहा जाने वाला प्राणी अर्थात्
प्राण-धारक-व्यक्ति अहंकार के चिदाभास चैतन्य से संचालित है । यह प्राणी पूर्णतया
सत्-चित्-आनन्द-स्वरूप-आत्मा से अनभिज्ञ होता है । उपरोक्त अनभिज्ञता किसी व्यक्ति
की व्यक्तिगत भूल नहीं है, अपितु नैसर्गिक है । जीव अर्थात्
प्राणी का जन्म होता है, मृत्यु होती है, परन्तु आत्मा इस जन्म-मृत्यु-चक्र से अ-स्पर्ष होती है । आत्मा अमृत तत्व
है । आत्म-ज्ञान ही जीव का सर्वोच्च लक्ष्य होता है । आत्म-ज्ञान ही मोक्ष है ।
...... क्रमश:
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