धर्म और धर्मी


शिक्षण-विधि-सोपान
धर्म और धर्मी विश्लेषण की प्रक्रिया का जो सूत्रपात गत अंक में, विषय और विषयी शीर्षक में किया गया था, उसे सतत् रखते हुये विचार करना है कि धर्म और धर्मी क्या हैं । विषय का धर्म होता है, इन्द्रियों का धर्म होता है, मस्तिष्क का धर्म होता है, और उपरोक्त वर्णित समस्त धर्मों को ओढने वाला, उपरोक्त समस्त धर्मों को अपना धर्म कहने वाला कोई खडा होता है, उसे धर्मी कहा जाता है । वर्तमान संदर्भ में धर्म का अर्थ कंचिद सनातन धर्म आदि के रूप में नहीं लिया जाना अपेक्षित है, अपितु धर्म मायने गुण अथवा विशेषता के रूप में ग्रहण करना अपेक्षित है । विषय धर्म में आयेगा, वस्तु का स्वरूप, उसका रंग आदि अथवा उसके प्रयोजन का माधुर्य आदि भी सम्मलित है । इन्द्रियों के धर्म में आयेगा, आँखे देखती हैं, इसलिये वस्तु विषय के रूपो लावण्य का आहरण मस्तिष्क में आँख इन्द्री के धर्म-तत्परता के आश्रित है, इसी प्रकार मनमोहक संगीत विषय के धर्मों का मस्तिष्क में आहरण कर्ण इन्द्री के धर्म-तत्परता के आश्रित है, आदि अर्थात् शेष इन्द्रियों के धर्मों का विस्तार पाठक स्वयं करें ऐसी अपेक्षा है । उपरोक्त क्रम का विस्तार करते हुये मस्तिष्क का भी धर्म होता है । मस्तिष्क यदि इन्द्रियों द्वारा आहरित विषय-बोध में रुचि अथवा अरुचि का सृजन करता है तो यह मस्तिष्क का धर्म है । इसी प्रकार बुद्धि जिसे विवेक भी कहा जाता है, के धर्म होते हैं । स्मरणीय है कि मस्तिष्क का चार प्रभाग नामत: मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इन चारो के विलक्षण धर्म होते हैं । धर्म का विवेक अर्थात् किसी प्रकरण पर जब विचार किया जा रहा है, तो उस विचार में सम्मुख होने वाले प्रत्येक धर्म को विश्लेषण द्वारा परीक्षित करना होगा कि वह धर्म किसका है, विषय का, इन्द्रीय का, मन का, बुद्धि का, चित्त का अथवा अहंकार का है । सामान्य लोकव्यवहार के किसी भी विश्लेषण में यह आप पायेंगे कि अहंकार ही होता है, जो विषय के धर्म का भी धर्मी बनता है, इन्द्रियों के धर्म का भी धर्मी बनता है, मन के धर्म का भी धर्मी बनता है, चित्त के धर्म का भी धर्मी बनता है, परन्तु सभी एक साथ नहीं बल्कि अलग अलग अवसर होते हैं । उपरोक्त विवरण से आपको विदित होगा कि लोकव्यवहार का सन्चालक नायक यह अहंकार है, जो कि स्वयं जड मस्तिष्क का एक प्रभाग मात्र है, परन्तु एक भ्रामक शब्द “मैं” को प्रयोग करते हुये वह आपके स्वरूप अर्थात् आपकी आत्मा का झूठा प्रतिनिधित्व करता रहता है । ..... क्रमश:

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म