तात्पर्य निर्णय
शिक्षण-विधि-सोपान
तात्पर्य निर्णय वेदान्त के
शिक्षण अवधि में, गुरू अद्वय-सत्य-तत्व का उपदेश करने की प्रक्रिया में, विभिन्न स्थलों
पर कतिपय दृष्टान्तों का आश्रय लेते हैं । अद्वय तत्व पारलौकिक है । इसलिये लौकिक
जगत के शब्द प्रमाण, अद्वय शुद्ध तत्व के उपदेश के लिये अक्षम होते है, अत: गुरू को
दृष्टान्तों का आश्रय लेना अपरिहार्य बाध्यता होती है । यथा तत् त्वं असि यह
शास्त्र उपदेश है । उपरोक्त दृष्टान्त में तत् पद अर्थात् ब्रम्ह, और त्वं
पद अर्थात् आत्मा, दोनो ही अद्वय सत्य तत्व हैं, इनका निरूपण लौकिक व्यवहार के शब्द नहीं कर
सकते हैं । अत: उपरोक्त वर्णित सत्य अद्वयं तत्वों को निरूपित करने के लिये गुरू
दृष्तान्तों के आश्रय से, उपरोप्क्त अद्वय तत्वों को लखाते हैं । ऐसे
दृष्टान्तों से जिज्ञासु को, गुरू द्वारा लखाये जा रहे अद्वय तत्वों पर्यन्त
पहुँचने के लिये, गुरू के उपदेश के तात्पर्य का विवेक करने की मानसिक क्षमता की अपेक्षा
होती है । इस प्रकार तात्पर्य निर्णय एक आवश्यक वाँक्षना है । ..... क्रमश:
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