गन्तव्य
शिक्षण-विधि-सोपान
गन्तव्य
लोकव्यवहार के जगत् के प्रत्येक व्यवहार में, कर्ता-कर्म-क्रिया, ज्ञाता-ज्ञेय-ज्ञान, दृष्टा-दृष्य-दृग का आश्रय और प्रकाशक
ज्ञान-स्वरूप आत्मा की साक्षात् अपरोक्ष अनुभूति अन्तिम गन्तव्य है । ज्ञान-स्वरूप
आत्मा के ज्ञान के उपरान्त कुछ भी जानने को शेष नहीं रह जाता है । आत्मा ही समस्त
जगत् के जड वस्तु-रूपों का अस्तित्व है । आत्मा के आश्रय से ही समस्त ज्ञान है ।
आत्मा से ही समस्त जगत् की उत्पत्ति है, स्थिति है, और आत्मा में ही
लय भी है । आत्म-चैतन्य ही अनन्त ब्रम्ह-चैतन्य है । आत्म-चैतन्य में ही समस्त
जगत् भासित होता है । जो भासित हो रहा है, वह भी आत्मा ही है । उपरोक्त वर्णित तथ्य
के विपरीत, लोकव्यवहार के पात्र जीव और जगत् के
सत्यत्व की अनुभूति ही, भ्रान्ति है, अज्ञान है । लोकव्यवहार से प्रारम्भ कर आत्मा के साक्षात् अपरोक्ष
अनुभूति पर्यन्त ज्ञान-यात्रा है । ...... क्रमश:
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