सोपान-परिचय


शिक्षण-विधि-सोपान
सोपान-परिचय शास्त्रों में ज्ञान का उपदेश प्रशस्थ करने की प्रक्रिया को स्थूल से सूक्ष्म को उन्मुख विधि द्वारा करते है । स्थूल का ज्ञान प्रत्येक को जन्म से होता है । इसलिये ज्ञात से अज्ञात की ओर शास्त्र जिज्ञासु को ले जाते है । उपरोक्त शिक्षण प्रक्रिया में शास्त्र अध्यारोप-अपवाद की विधि अपनाते हैं । प्रश्न उठेगा कि अध्यारोप क्या है ? उत्तर है, सत्य पर अ-सत्य का आरोपण अध्यारोप कहा जाता है । सत्य ब्रम्ह है । अ-सत्य यह माया-लोक है । नाम-रूप-कर्म रूपी यह कल्पित माया-लोक, सत्य-ब्रम्ह के ऊपर आरोपित है । इस प्रकार यह दृष्य-अनुभवगम्य-जगत्, सत्य-ब्रम्ह के ऊपर अध्यारोपित है । सत्य आपकी अपनी आत्मा है । यह स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर, आपकी सत्य आत्मा के ऊपर आरोपित है । इस प्रकार आपकी स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर आपकी सत्य-आत्मा के ऊपर अध्यारोपित है । सत्य का ज्ञान न होना, अज्ञान है । अज्ञान के फल से, सत्य के स्थान पर किसी कल्पित अ-सत्य को सत्य मान लेना, अध्यास कहा जाता है । भोज्य-जगत् में सत्य-ब्रम्ह का अज्ञान, भोक्ता-जीव में सत्य-आत्म-स्वरूप का अज्ञान, अज्ञान है । उपरोक्त कथित भोक्ता-भोज्य के सत्यत्व का अज्ञान, और उपरोक्त अज्ञान के फल से, माया-कल्पित-भोज्य-जगत् जो कि मात्र नाम-रूप-कर्म है और माया-कल्पित-भोक्ता-जीव जो कि मात्र अहंकार है, सत्य प्रतीत होने लगते हैं । यह माया की महिमा है, लीला है । शास्त्र जिज्ञासु के जन्म से ज्ञात ज्ञान अर्थात् उपरोक्त कथित अध्यारोपित असत्य को स्वीकारते हैं, पुन: जिज्ञासु की मानसिक स्थिति की प्रौढता होने पर अध्यारोपित को न-कारते है, इसे अपवाद कहा जाता है । यह शिक्षण विधि है । ज्ञात से अज्ञात की ओर शास्त्र जिज्ञासु को ले जाते हैं । ....... क्र्मश:  

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