प्राण उपासना
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
प्राण उपासना जो व्यक्ति प्राण को उसकी महिमा सहित, प्राण की उत्पत्ति, प्राण शरीर में कैसे प्रवेष करता है, प्राण शरीर के किन भागों में रहता है, वह अपने को कैसे पंच प्राण के रूप में वितरित करता है, वह कैसे आध्यात्म को पोषित करता है, वह कैसे अधिभूत को पोषित करता है, जानता है और उसकी उपासना करता है उसके पुत्रों की अपमृत्यु नहीं होती है
और वे दीर्घाआयु का भोग करते हैं, यह इहलोक फल होगा और मृत्यु-उपरान्त वह
शुक्लगति द्वारा ब्रम्हलोक को जाता है जो कि आपेक्षिक मुक्ति है और वह क्रममुक्ति
द्वारा आत्यान्तिक मुक्ति पाता है, ऐसा फलश्रुति वर्णन शास्त्रों में उपदेश है
। ....... क्रमश:
स्थूल शरीर को गति प्रदान करने वाली जो ऊर्जा है मुख्य रूप से उसे प्राण कहा जाता है। इस प्राण के अनुपस्थिति में निश्चेष्ट अवस्था को प्राप्त किए हुए शरीर को मृत शरीर घोषित कर दिया जाता है। प्राण विश्व व्यापक प्रचंड ऊर्जा है शास्त्र और उपनिषदों के आधार पर यह अनेक भागों में विभक्त है मुख्य रूप से यह प्राण स्थूल शरीर से भिन्न। 10 भागों में बटा हुआ है जिनके नाम कुछ इस प्रकार बताए जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंप्राण अपान समान बयान उदान।
इनके उप प्राण भी हैं ।
इन पांच प्राण के पांच उप प्राण भी हैं
जिनको नाग कुर्म क्रिकल देवदत्त और धनंजय।
शरीर संचालन की अहम भूमिका में यह प्राण ऊर्जा विद्युत तरंगों के के रूप में अपना कार्य करते रहते हैं ।
योग शास्त्र की भाषा में सूक्ष्म पंचमहाभूत आदि।
इन पांच प्राणों को शब्द स्पर्श रूप रस गंध तनमात्रा कहते हैं ।
इन तन मात्राओं से निर्मित शरीर को सूक्ष्मा शरीर कहा जाता है।
अष्टांग योग का साधक या योगी
प्राणों की इन तन मात्राओं को प्रकाश रूप में अपने आज्ञा चक्र ध्यान अथवा मेडिटेशन की अवस्था में देखता है।
यह प्राण ।
साधक या योगी को आज्ञा चक्र पर भिन्न-भिन्न प्रकाश तरंग या प्रकाश
रश्मि यों के रूप में दिखाई देता है
इंन प्रकाश राशियों का पिंड ही सूक्ष्म शरीर कहलाता है । प्राणों की अनुपस्थिति में या ( सूक्ष्म शरीर की अनुपस्थिति में ) स्थूल शरीर विखंडित हो जाता है मृतप्राय हो जाता है ठीक इसी तरह से कारण शरीर मैं शब्द स्पर्श रूप रस गंध प्रकाश राशियों का यह सूक्ष्म शरीर
कारण शरीर में विलय को जब प्राप्त हो जाता है । तबयहां से मोक्ष या मुक्ति द्वार
खुलता है।