उपशान्त तेज:
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
उपशान्त तेज: मृत्यु के कगार पर, उदान-वायु जीवन-तत्व-प्राण को उडा ले
जाती है, अन्तरण काल में प्राण-अपान-समान-व्यान
उदान में लय दशा में रहते हैं, अन्त:करण मन में इन्द्रियां लय दशा में
समाहित रहते हैं, चिदाभास-चैतन्य रूप जीवात्मा और मन के
संकल्प भी अन्तरित होते हैं, यात्रा का लोक यथा संकल्प होता है । पुन:
प्राण को दूसरी नयी स्थूल-शरीर पोषण के लिये मिलती है । ...... क्रमश:
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