समष्टि-प्राण-हिरण्यगर्भ


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
समष्टि-प्राण-हिरण्यगर्भ समष्टि प्राण अर्थात् सम्पूर्ण जगत् के समस्त जीव प्रपंचों की संकलित जीवन-शक्ति, हिरण्यगर्भ हैं । कारण-ईश्वर-विष्णु पुरुष की छाया सदृष्य उत्पत्ति हिरण्यगर्भ-देवता हैं । उपरोक्त कथित शास्त्र उपदेश की व्याख्या इस प्रकार है । कारण-ईश्वर के संकल्प मात्र से माया शक्ति क्रियाशील होकर कारण की छाया प्राण का प्रक्षेपण उपस्थित करती है । संकलित-संचित-कर्म-फल-कारण की छाया अभिव्यक्ति प्राण-शक्ति है । उपरोक्त कथित प्राण का अन्त:करण मन अर्थात् संकल्प-विकल्पात्मक-वृत्ति-स्थल, कारण-संचित-कर्म-फल का साकार-व्यक्त-अभिव्यक्ति है । उपरोक्त कथित हिरण्यगर्भ पिण्ड को माया-शक्ति प्रातिभासित चैतन्य जिसे शास्त्र चिदाभास शब्द द्वारा व्यक्त करते है, द्वारा क्रियाशील करती है । ...... क्रमश:  

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