जीव का स्वरूप


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
जीव का स्वरूप जीव का परिचय उसका चिदाभास चैतन्य होता है । जीव का आधार उसका प्राण है । जीव की आत्मा पारमार्थिक सत्य है । चिदाभास चैतन्य लोकव्यवहार का आधार है । समस्त गति का संचालन प्राण-शक्ति से है । जीव अपने आत्म-स्वरूप से अनभिज्ञ है । अनभिज्ञता माया की महिमा है । अनन्त ब्रम्ह को, एक सीमित स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर की सीमा में बँधा चैतन्य अनुभव करना जानना, और तद्नुसार लोकव्यवहार करना, यह अज्ञान का जीवन है । अनन्त आत्मा को अपने स्वरूप का परिचय जानना और तद्नुसार जीवन यापन करना ज्ञान की दशा है । ....... क्रमश:   

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