अनिर्वचनीय


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
अनिर्वचनीय जो कि अनुभवगम्य है, परन्तु सत्यता के परीक्षण में सत्य प्रमाणित नहीं होता है, उसे शास्त्रों में अनिर्वचनीय कहा जाता है । व्यक्ति की छाया अनुभवगम्य होती है, परन्तु छाया का अस्तित्व पुरुष और प्रकाश के आश्रय पर होने के कारण, सत्य प्रमाणित नहीं होती है, इसलिये छाया अनिर्वचनीय है । पद होता है, परन्तु उस पद का पदार्थ नही पाया जाता है, उसे अनिर्वचनीय कहा जाता है । शास्तो में इस जगत् को अनिर्वचनीय बताया गया है, माया को अनिर्वचनीय बताया गया है । प्रत्येक की अनिर्वचनीयता की व्याख्या भिन्न प्रकार से की जाती है । गगनफूल, बन्ध्यापुत्र आदि अन्य उदाहरण हैं । ...... क्रमश:

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