सर्व गन्तव्य:


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
सर्व गन्तव्य: दृष्य अनुभवगम्य जगत् के समस्त अवयव घटकों का अन्तिम गन्तव्य स्थिति, लय की दशा होती है । दृष्य अनुभवगम्य जगत् के समस्त जीव प्रपंच का मस्तिष्क नित्य-प्रतिदिन लय की दशा को प्राप्त होता है । उपरोक्त कथित तथ्यात्मक अभिव्यक्ति को, सूर्य के उदय और अस्त के दृष्टान्त द्वारा व्यक्त किया जाता है । जिस प्रकार प्रतिदिन सूर्य देवता अस्त की प्रक्रिया में, अपनी रश्मियों को संकलित कर अस्तगत होते हैं, जो कि रात्रि के रूप में पर्णय है, और पुन: प्रात:काल सूर्योदय के काल में वही सूर्यदेवता अपनी रश्मियों को विस्तृत करते हैं, जो कि दिवा-काल का विमोचन है । लय की दशा में मस्तिष्क, ब्रम्ह में समाहित हो जाता है । पुन: जागृत-दशा की स्थाप्ना पर, मस्तिष्क लोक-व्यवहार के लिये उपलब्ध हो जाता है । ..... क्रमश: 

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