माया महिमा
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
माया महिमा
माया शक्ति निराकार, निर्विकार, असंग ब्रम्ह को
विषय और वस्तु के रूप में, इस दृष्य अनुभवगम्य जगत् के रूप में
प्रक्षेपित करती है । उपरोक्त कथित ब्रम्ह इस जगत् के रूप में दृष्य और अनुभवगम्य
हो जाता है । अनुभवकर्ता भी उपरोक्त कथित ब्रम्ह ही होता है । परन्तु उपरोक्त कथित
जगत् का विषय अर्थात् अनुभवकर्ता तथा वस्तु अर्थात् नाम-रूप जगत् दोनो ही एक दूसरे
को सत्यवद् व्यवहृत करते हैं, जबकि उपरोक्त कथित विषय-वस्तु दोनो ही
आश्रित अस्तित्व हैं, और विडम्बना का चर्मोत्कर्श इस तथ्य में
होता है कि उपरोक्त कथित विषय-वस्तु दोनो ही अपने अस्तित्व के सत्य आलम्बन से पूर्णतया अनभिज्ञ होते हैं । ....... क्रमश:
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