त्रिकुटी पर्यन्त मायालोक
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
त्रिकुटी पर्यन्त मायालोक प्रमाता-प्रमाण-प्रमेय, कर्ता-करण-कर्म त्रिकुटियाँ
माया-कल्पित-लोक का स्वरूप भी है, सीमा भी है । प्रमाता और कर्ता, विषेस-चैतन्य अर्थात् एक स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर विषेस में परिलक्षित
होने वाला चैतन्य, अर्थात् एक अहंकार का अवयव, माया-कल्पित-लोक का अंग है । प्रमाण और करण, दोनो ही स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर की क्रमश: ज्ञानेन्द्री व कर्मेन्द्री माया-कल्पित-लोक
का अवयव है । प्रमेय और कर्म यह माया-लोक है । माया-लोक का समस्त लोक-व्यवहार
उपरोक्त वर्णित त्रिकुटी द्वारा ही सम्पन्न हो रहा है । उपरोक्त कथित रूप में
त्रिकुटी ही माया-लोक की सीमा है । ...... क्रमश:
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