शक्ति क्षेत्र
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
शक्ति क्षेत्र शास्त्रों में प्राण का स्थूल शरीर में निवास हृदय में बताया गया है ।
प्राण अन्त:-करणों का धारक होने के कारण, चिदाभास चैतन्य का निवास हृदय-गोलकं में
है । प्राण चक्छु, कर्ण और नासिका के शक्ति वाँक्षना की
पूर्ति स्वयं करता है । दो चक्छु, दो कर्ण, दो नासिका रन्ध्र
एवं एक जिह्वा कुल योग सात द्वारों से स्थूल शरीर को मिलने वाले अनुभव-पोषणों को
वैशानर-अग्नि जो कि शरीर के पाचन का आधार होती है, की सप्त-ज्वाला
बताया गया है । समान-प्राण उपरोक्त कथित सप्त-ज्वाला के पोषण को सम्पूर्ण शरीर में
वितरित करने का प्रभाग है । उपरोक्त वितरण से सप्तांग क्रियाशील होते हैं ।
अपान-प्राण विसर्जन का नियंत्रक होता है । विसर्जन मुख्यत: उपस्थ एवं पायु से होते
हैं । व्यान-प्राण सम्पूर्ण शरीर में नाडियों के मार्ग से गति करता है और नाडियों
का प्रारम्भ हृदय से होता है । उदान-प्राण प्राण विसर्जन के समय क्रियाशील होकर
प्राण को स्थूल शरीर से सुशुम्ना नाडी से बाहर निकालता है । ...... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें