प्राण प्रतिष्ठा कर्म
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
प्राण प्रतिष्ठा कर्म जीव की शरीर में प्राण की प्रतिष्ठा, उसके संचित कर्मफलों के भोग के निमित्त
से होती है । कर्म की उत्पत्ति काम से होती है । काम और संकल्प दोनो में केवल स्तर
का भेद है, इनकी उत्पत्ति का निमित्त एक ही होता है
। सामान्य क्रम में, जीव की शरीर से प्राण का निर्गमन, उसके संचित कर्म-फलों का भोग पूरा होने पर होती है । स्थूल शरीर, कर्मों के भोग के अनुरूप होती है । प्राण स्थूल शरीर से निर्लिप्त रहता
है । फिरभी स्थूल शरीर को जीवन शक्ति पोषित करता है । ..... क्रमश:
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