प्राण ऊर्जा नियन्त्रक मात्र
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
प्राण ऊर्जा नियन्त्रक मात्र व्यष्टि शरीर में प्राण और समष्टि के विचार में हिरण्यगर्भ, केवल ऊर्जा का नियन्त्रण करते हैं । मस्तिष्क करण है । कार्य-करण-कारण
यह त्रिकुटी होती है । आत्मा का चैतन्य मस्तिष्क में प्रगट होता है । यह चैतन्य
मस्तिष्क के मार्ग से इन्द्रियों पर्यन्त विस्तृत हो जाता है । परन्तु, स्थूल-शरीर से प्राण असंग हैं । प्राण से भी चैतन्य असंग होता है ।
स्थूल शरीर मात्र प्राण और चैतन्य की अभिव्यक्ति का स्थल होता है । ...... क्रमश:
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