लघु कथा
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
लघु कथा
व्यक्ति के शरीर के पोषण के चौबीस सिद्धान्तों में से उन्नीस सिद्धान्त अपने अपने
गौरव की घोषणा कर रहे थे, और प्राण केवल श्रोता था । अन्त में
प्राण ने कहा अच्छा मैं अब चलता हूँ । अभी प्राण निकला भी नहीं था, कि सभी अन्य उन्नीस सिद्धान्त अनुभव करने लगे कि प्राण के आभाव में हम
प्रत्येक रह नहीं सकते हैं । फलत: सभी उन्नीस सिद्धान्त, प्राण से विनय करने लगे कि आप न जाइये । उपरोक्त वर्णित लघु कथा से
विदित होता है कि प्राण-शक्ति ही सभी अन्य यथा चक्छु, वाक्, मन की क्रिया-शक्ति का श्रोत होता है ।
यदि प्राण शरीर में न हो, तो कोई अन्य अंग क्रियाशील नहीं रह सकते
हैं । प्राण-शक्ति ही सभी अन्य का पोषक है । ...... क्रमश:
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