काल-सृष्टि

माया-कल्पित-जगत्-सोपान

काल-सृष्टि सूर्य के उदय से दिन है । सूर्य के अस्त से रात्रि है । उपरोक्त अनुभूति ही काल के बोध का आधार है । चन्द्रमा की कलायें अर्थात् प्रतिपदा से पूर्णिमा पर्यन्त का चन्द्रमा के स्वरूप का वृद्धि-क्रम, और प्रतिपदा से अमावस्या पर्यन्त चन्द्रमा के स्वरूप का ह्रास-क्रम, तिथियों के बोध का आधार है । उपरोक्त वर्णित दिन-रात्रि और तिथियाँ ही काल के परिवर्तनीय प्रकृति के अनुभूति का आधार हैं । यह हिरण्यगर्भ सृष्टि का काल, माया-कल्पित-जगत् की तीसरे चरण का सृजन है । ...... क्रमश

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