ज्योतिरेकं
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
ज्योतिरेकं
सूर्य की ज्योति को प्रकाश भी कहा जाता है एवं सूर्य-ज्योतिं को चैतन्य के रूप में
वर्णन किया जाता है । गायत्री मन्त्र में “भर्ग:” शब्द भी द्वि-अर्थीय है, पहला प्रकाश और दूसरा चैतन्य, जो कि सूर्य के लिये प्रयोग किया गया है
। सूर्य के प्रकाश से संचरित ऊर्जा द्वारा जीव को प्राण-शक्ति मिलती है । जीव प्राण शक्ति द्वारा
ही गति को प्रेरित होता है । उपरोक्त कथित स्थिति को व्यक्त करने के लिये शास्त्र
ज्योतिरेकं शब्द का प्रयोग करते हैं । ..... क्रमश:
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