व्यक्त और अव्यक्त
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
व्यक्त और अव्यक्त व्यक्त जगत् और अव्यक्त जगत् दोनो रयि-प्राण हैं । व्यक्त जगत् को रयि
कहा जाता है । अव्यक्त जगत् को प्राण कहा जाता है । सम्पूर्ण व्यक्त जगत् भी
हिरण्यगर्भ हैं । समस्त अव्यक्त जगत् भी हिरण्यगर्भ हैं । रयि और प्राण केवल
लोकव्यवहार में प्रचलित दो नाम मात्र हैं । एक पूर्ण की अभिव्यक्ति के दो पहलू हैं
। व्यक्त दशा है और अव्यक्त दशा है । कार्य-कारण अवस्थायें हैं । यह माया कल्पित
जगत् की आधार शिला रयि-प्राण का परिचय मात्र है । एक सापेक्ष अनुभूति का आधार है ।
यह माया कल्पित जगत ब्रम्ह की अभिव्यक्ति है, जिसमें ब्रम्ह आच्छादित है, व्यक्त भ्रामक है, मिथ्या है । स्मरणीय है कि, जगत् कारण ईश्वर, जो कि माया सहित ब्रम्ह है, की छाया हिरण्यगर्भ है, हिरण्यगर्भ ही व्यक्त स्थूल जगत् भी है, हिरण्यगर्भ ही अव्यक्त सूक्ष्म जगत् भी है, और छाया सदैव मिथ्या है । ...... क्रमश:
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