मिथुन-सृष्टि


माया-कल्पित-जगत्-सोपान
मिथुन-सृष्टि रयि-प्राण जो कि दो सिद्धान्त हैं, जो कि दोनो-प्रत्येक एक दूसरे के विपरीत स्वभाव के हैं, परन्तु दोनो मिलकर एक पूर्ण होते हैं । उदाहरण दिन-रात, जन्म-मृत्यु, उतरायणम्-दक्षिणायनम्, सृष्टि-प्रलयम्, स्त्री-पुरुष आदि । सम्पूर्ण सृष्टि उपरोक्त वर्णित मिथुनम् द्वारा सृजित हैं । उपरोक्त कथित मिथुनम् के अंग रयि और प्राण वास्तविकता में हिरण्यगर्भ की ही अभिव्यक्ति हैं । हिरण्यगर्भ नें, उपरोक्त कथित मिथुनम् के सृजन द्वारा, अपने को ही सृष्टि के रूप में विस्तृत करने को लक्षित करके किया है । उपरोक्त वर्णित मिथुनम् माया कल्पित जगत् की आधार-शिला है । उपरोक्त कथित मिथुनम् ही इस जगत् के विषय-वस्तु हैं । उपरोक्त कथित मिथुनम् ही इस जगत् के सापेक्ष अस्तित्व के आधार स्तम्भ हैं । उपरोक्त कथित मिथुनम् ही इस जगत् के प्रत्येक अवयव का उद्गम् हैं । हिरण्यगर्भ नें संकल्प किया कि, उपरोक्त कथित मिथुनम् ही, इस जगत् की सृष्टि प्रक्रिया में प्रजा का सृजन करेंगे, जो कि भोज्य जगत् के भोक्ता हैं । अत: प्रजा का सृजन ही, मिथुनम् के सृजन का प्रयोजन है । ....... क्रमश: 

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