अपरा-विद्या
माया-कल्पित-जगत्-सोपान
अपरा-विद्या जो व्यक्ति केवल कर्म करता है, वह कृष्ण गति द्वारा स्वर्ग-लोक को जाता
है । जो व्यक्ति कर्म-उपासना करता है, वह शुक्ल गति द्वारा ब्रम्ह-लोक को जाता
है । सृष्टि-प्रक्रिया का अध्ययन करने में प्रश्न उत्पन्न होता है कि उपरोक्त कथित
सृष्टि प्रक्रिया के अध्ययन द्वारा व्यक्ति के किस प्रयोजन की पूर्ति सम्भव है ।
वेद उपदेश सदैव स-प्रयोजन होते हैं, इसलिये ही प्रामाणिक हैं । विद्वान
आत्मज्ञानी आचार्य आदि-शंकर उपरोक्त वर्णित प्रयोजन का निर्धारण करते हैं कि जीव
और जगत् के मध्य भोक्ता-भोज्य सम्बन्ध है, विषय-वस्तु का सम्बन्ध है, इसलिये जीव को स्पष्ट ज्ञान होता है कि, केवल कर्म का फल
और कर्म-उपासना-समुच्चय का फल, व्यक्ति को मुक्ति नहीं प्रदान कर सकता
है । विद्वान आचार्य के मत, यथा वर्णित उपरोक्त की व्याख्या करते
हुये विद्वान आचार्य आनन्दगिरी कहते हैं कि, वैराग्य सिद्धर्थम् शास्त्र उपदेश का प्रयोजन
है । ........ क्रमश:
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