विवेक और निर्णय
पद-परिचय-सोपान
विवेक और निर्णय विचार द्वारा निर्णय किया जाना अपेक्षित होता
है । विचार विवेक का क्षेत्र होता है । उचित और अनुचित का परीक्षण करते हुये उचित
को अंगीकार करना है । शास्त्र एवं गुरू ज्ञान का उपदेश करते हैं । उपदेश विदित
करता है कि हित क्या है । अपेक्षित क्या है । परन्तु इस माया-सृष्टि के
जगत्-व्यवहार में रत् व्यक्ति को व्यवहार और हित के मध्य संतुलन करना है । व्यवहार
उसका जीवन है । हित उसका अपेक्षित है । उपरोक्त संतुलन ही सबसे बडा पुरुषार्थ है ।
उपरोक्त संतुलन विकसित विवेक द्वारा ही सम्भव हो सकता है । उपरोक्त संतुलन
के लिये अति-शान्त-दशा का मस्तिष्क की अपेक्षा होती है । उपरोक्त समस्त
जुटाना ही सर्वोच्च पुरुषार्थ होता है । दृढ निष्ठा और गुरू के प्रति समर्पित
सानिध्य द्वारा ज्ञान सम्भव होता है.........क्रमश:
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