मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 51
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 51 स्वभाव का आत्मा को समर्पण का अभिप्राय होता है कि व्यष्टि का सर्वस्य
को समर्पण है । स्वभाव का सृजन सदैव व्यक्ति के पूर्व के संचित कर्मों की आधार पर
होता है । संचित कर्म सदैव अज्ञान के फल से सम्पादित कर्म होते हैं । आत्मा ज्ञान स्वरूप है । अज्ञान का ज्ञान
को समर्पण है । ज्ञान का स्वभाव सर्वविभू: है । सर्वविभू: अर्थात् सर्वत्र व्याप्त
है । इस सर्वविभू: ज्ञांनस्वरूप के प्रसाद से ही अज्ञान भी प्रकाशित होता है, अर्थात् अ-ज्ञानी होने का बोध भी व्यक्ति को ज्ञान के प्रसाद से ही
सम्भव होता है । एक जड पदार्थ को तो यह बोध भी नहीं हो सकता है कि वह जड है, अज्ञानी है । इसलिये जब तक व्यक्ति अपने अज्ञान के फल से प्राप्त स्वभाव
को ज्ञान को समर्पित नहीं करेगा तब तक उसे ज्ञान सम्भव नहीं हो सकता
है......क्रमश:
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