मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 47


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 47 अज्ञान सदैव अनादिकालीन होता है । परन्तु ज्ञान की दशा में अज्ञान का अन्त होता है । अहंकार अनादिकालीन होता है । परन्तु सत्य अर्थात् आत्मा अर्थात् स्वरूप का ज्ञान की दशा में अहंकार का क्षय होता है । अहंकार माया सृष्टि का फल है । मस्तिष्क चेतनवद् कार्य करता है, तभी भोज्य जगत् का अनुभव जीव ग्रहण करता है । व्यवहारिक जगत् इसी रूप के आश्रय से गतिमान है । इसलिये सामान्य व्यक्ति जन्म से मृत्यु पर्यन्त इसी व्यवहारिक स्वरूप से ही सन्तुष्ट है । परन्तु यह व्यवहारिक रूप पारमार्थिक नहीं है । इसलिये व्यक्ति को अपने उत्थान के लिये विचार करना चाहिये, सत्य का विचार करना चाहिये । सत्य कहीं दूर नहीं है । सत्य प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्वरूप है । अपने स्वरूप के ज्ञान की लालसा से जब व्यक्ति गुरू की शरण ग्रहण करता है, गुरू शास्त्र प्रमणों द्वारा व्यक्ति को उसके स्वरूप की क्षवि का दर्शन कराते हैं । व्यक्ति की आत्मा ही ब्रम्ह है । आत्मा जीव में विद्यमान शुद्ध चैतन्य है । अहंकार चैतन्य की मस्तिष्क में अभिव्यक्ति है । अभिव्यक्ति केवल भ्रम है । सत्य को जानना ज्ञान है । अहंकार को निर्मूल कर देने पर शून्य कर देने पर जो कुछ शेस बचेगा वह आपकी आत्मा है......क्रमश;

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