मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 46


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 46 आत्मा ज्ञानस्वरूप है । यह ज्ञान एक ही रूप में ग्राह्य होना सम्भव है । ज्ञान मैं हूँ । शास्त्र दर्पण सदृष्य व्यक्ति को उसके अपने स्वरूप की क्षवि दर्शाते हैं । आत्मा ब्रम्ह-स्वरूप दोनो एक दूसरे के पर्याय हैं । आत्मा का ध्यान अथवा ज्ञान एक भ्रामक अभिव्यक्ति है । आत्मा सत्य निरूपण है, मैं हूँ है । मैं जब जन्मा था, तब भी रूप यही था, मैं हूँ, मैं युवा हुआ तब भी रूप यही था, मैं हूँ, मैं जब बृद्ध हो गया तब भी रूप यही है, मैं हूँ, । आत्मा को ग्रहण कर लेना ही आत्म-ज्ञान है । आत्मा में जीवन यापन करना ही आत्मा का आश्रय है । ब्रम्ह और आत्मा एक ही सत्य के दो नाम हैं । नाम जगत् ने दिया है । सत्य तो अ-निर्वचनीय है । भ्रामक अहंकार का जीवन यापन करते हुये उपरोक्त कथित क्षवि को ग्रहण कर पाना अत्यधिक दुष्कर प्रयत्न है । मस्तिष्क का शुद्धता के लिये संस्कार अपेक्षित होता है । वैदिक कर्म-काण्ड मस्तिष्क को शुद्धता प्रदान करते हैं । उपासना अभ्यास मस्तिष्क की ग्राह्य क्षमता का विस्तार करता है । शुद्ध-सात्विक-विकसित मस्तिष्क ही उपरोक्त कथित क्षवि को धारण कर सकता है..........क्रमश:

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