मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 45


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 45 ब्रम्ह को असंग, निराकार, निर्विकार, अनन्त, आनन्द उपदेश किया गया है । पद नाम होता है । पदार्थ रूप होता है । किसी रूप को कोई नाम देकर उसे जगत् के व्यवहार में प्रयोग किया जाता है । जगत् रूप है इसलिये इसे नाम अर्थात् पद जगत् देकर व्यवहार में प्रचलित किया जाता है । इस जगत् पद का पदार्थ ब्रम्ह है । जब विचारक जगत् को एक सत्य मानने की चेष्टा करते हैं, तो जगत् को मिथ्या कह कर उनकी चेष्टा का निषेध किया जाता है । जब पदार्थ का निषेध कर दिया जाता है तब पद का औचित्य भी समाप्त हो जाता है । उपरोक्त मींमासा के आधार पर, जब द्वैत का प्रचार किया जाता है तो उस प्रचार का खण्डन करने के लिये अद्वैत कहा जाता है । परन्तु जब द्वैत का खण्डन हो गया तब अद्वैत का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता है । इस प्रकार ब्रम्ह के लिये जो भी लक्षण निर्धारित किये जाते हैं वह सब केवल जगत् के व्यवहार में प्रचलित मानको के आधार पर व्यक्ति को ब्रम्ह की विलक्षणता का भास कराने के लिये किये जाते हैं । ब्रम्ह की अभिव्यक्ति केवल एक है, मौन............क्रमश:

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