मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 44
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 44 ब्रम्ह शाश्वत् ज्ञानस्वरूप है । माया उसकी बौद्धिक कौशल है । ब्रम्ह और
माया भिन्न नहीं हैं । माया ब्रम्ह को ही इस जगत् के नाम-रूप-कर्म के रूप में
प्रक्षेपित कर प्रस्तुत की है । ब्रम्ह और जगत् दो भिन्न अस्तित्व नहीं है ।
ब्रम्ह ही जगत् के रूप में भासित हो रहा है । जीव जिसमें मनुष्य भी सम्मलित है, इस जगत् का ही अवयव है । माया समष्टि जगत् का संचालन करती है । जगत् के
व्यवहार चेतन जीव और अ-चेतन प्रपंचों के मध्य परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया है । जीव
का मस्तिष्क एक सीमित यन्त्र है । इस सीमित मस्तिष्क के लिये समष्टि विचार ही पहले
तो एक बडा लक्ष्य बन जाता है । फिर अनन्त ब्रम्ह की कल्पना तो उस सीमित मस्तिष्क
के लिये असाध्य लक्ष्य के समान हो जाता है । इसलिये मस्तिष्क को उस ब्रम्ह को ही
समर्पित करने का उपदेश शास्त्र करते हैं.........क्रमश:
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