मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 40
पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 40 प्रत्येक जीव की वर्तमान शरीर, उसे अपने पूर्व के जन्मों के संचित
कर्म-फलों के भोग के लिये मिली है, ऐसा उपदेश शास्त्र प्रमाणों में निहित है
। इस स्थल पर दो प्रश्न उठते हैं ? पहला कि यदि वर्तमान स्थूल शरीर को फल
भोग साधन बताया जा रहा है, तो जीव कौन है ? दूसरा उसे अपने पूर्व के जन्मों के संचित कर्म-फलों के भोग के लिये मिली
है, इस नियम का औचित्य क्या है ? दोनो ही उत्तम प्रश्न हैं । पहले प्रश्न
का उत्तर इस प्रकार है, जीव की तीन शरीरों का उल्लेख मिलता है, स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर, कारण-शरीर होती है । जैसा की नाम से ही विदित है, कारण-शरीर कारण है और सूक्ष्म-शरीर और स्थूल-शरीर उसके कार्य हैं ।
कारण-शरीर समस्त अव्यक्त नामत: अव्यक्त कर्म-फल, अव्यक्त-मस्तिष्क, अव्यक्त-अवस्था की धारक होती है । अव्यक्त कर्म-फल पूर्व जन्मों के
संचित कर्म-फल होते हैं जिनका भोग अभी शेष है । अव्यक्त-मस्तिष्क जीव के प्रतिदिन
की सुशुप्ति-दशा में होता है । अव्यक्त-अवस्था और व्यक्त-अवस्था यह सृष्टि का
संचालन क्रम है । स्थूल-शरीर के माध्यम से जीव जगत् के साथ व्यवहार करता है ।
सूक्ष्मशरीर समस्त संचालन-नियंत्रणों की धारक होती है । सूक्ष्म-शरीर और
स्थूल-शरीर एक दूसरे के साथ मिलकर जगत् के व्यवहार करते हैं और जीव का जीवन भी
सतत् होता है । जैसे भूख की अनुभूति सूक्ष्म शरीर में होती है, कुछ खाने का निर्णय मस्तिष्क में होता है, खाने का कार्य
सम्पादन स्थूल-शरीर के अंगो द्वारा सम्पादित होता है । मृत्यु की दशा में, स्थूल-शरीर पूर्ण निष्प्रयोज्य हो जाती है, सूक्ष्म-शरीर गति करती है, अर्थात् वर्तमान स्थूल-शरीर से निकल-कर
चली जाती है और पुन: उसे दूसरी स्थूल-शरीर आवंटित होती है । उपरोक्त विवरण से
स्पष्ट है कि जीव सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर जोडी को ही कहा
जायेगा..........क्रमश: (प्रश्न दो का उत्तर अगले अंक में)
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