मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 38


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 38 यदि ब्रम्ह जगत् का कारण है तो जगत् ब्रम्ह का कार्य है । कारण ही कार्य में विद्यमान रहता है । प्रत्येक स्वर्णा आभूषण में कारण स्वर्ण विद्यमान है । जगत् के प्रत्येक नाम-रूप में ब्रम्ह विद्यमान है । माया ब्रम्ह की बौद्धिक शक्ति है । जगत् के सम्पादन समस्त गति की कर्ता प्रकृति है । प्रकृति और माया पर्याय हैं । जगत् के कर्मों और गति के प्रकरण में जीव भी प्रकृति के प्रतिनिधि रूप में हैं । इस क्रम में यदि जीव प्रकृति की अपेक्षानुसार कर्म कर रहा है, तो उसका उचित कर्म है । उचित कर्म का पुण्य पर्याय है । उपरोक्त के विपरीत प्रकृति की अपेक्षा के विरुद्ध किया गया कर्म सम्पादन अनुचित है । अनुचित कर्म पाप का पर्याय है । जीव का इच्छाजनित कर्म अनुचित कर्म है । कर्मफल की अपेक्षा से किया गया कर्म अनुचित कर्म है । पुण्य और पाप अदृष्य कार्य-फल होते हैं । परन्तु इनका संचय ही जीव के पुनर्जन्म का निमित्त बनता है.........क्रमश: 

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