मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 35


पद-परिचय-सोपान
मस्तिष्क के सन्सकार : चरण 35 यह माया कल्पित स्थूल-शरीर, सूक्ष्म-शरीर की संरचना एक यन्त्र के समान है । जिस प्रकार एक किसी विद्युत शक्ति से कार्य करने वाले यन्त्र की संरचना की जाती है, वह यन्त्र जब तक उसमें विद्युत का प्रवाह नहीं होता है अक्रिया-कारी रहता है, परन्तु उसी यन्त्र में जब विद्युत प्रवाह संचरित किया जाता है वह क्रियाकारी हो जाता है और यथा निर्माण-कला वह प्रकाश प्रसारित करने लगता है अथवा किसी प्रकार की पूर्व-निर्धारित गति करने लगता है आदि, उसी प्रकार यह माया कल्पित जड-शरीर चैतन्य के मस्तिष्क में व्याप्ति के फल से समस्त इन्द्रियों सहित चेतन-वद् व्यवहार करने लगता है । यह माया-कल्पित रोबोट इस माया-कल्पित मिथ्या जगत् के साथ व्यवहार करता है । उपरोक्त समस्त विवरण के अनुसार उपरोक्त वर्णित व्यवहार में जीव कहा जाने वाला रोबोट और जगत् के जड प्रपंच दोनो ही मिथ्या हैं, क्योंकि दोनो ही माया कल्पित हैं । इसलिये दोनो एक दूसरे को सत्य मानते हैं । जगत् जीव को और जीव जगत् को दोनो एक दूसरे को सत्य मानते है । परन्तु दोनो का सत्यत्व आश्रित है । उपरोक्त दोनो ही मिथ्या व्यवहार-रत् भोक्ता जीव और भोज्य जगत् का सत्यत्व का आश्रय एक है, वह आपका आत्म-स्वरूप है, जो कि पारमार्थिक सत्य है, वह सत्य अधिष्ठान है.........क्रमश:

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