द्वि-स्तरीय-वस्तु-रूप-ज्ञान
पद-परिचय-सोपान
द्वि-स्तरीय-वस्तु-रूप-ज्ञान जगत् के समस्त वस्तु-रूप-ज्ञान के विचार में, व्यक्ति पुस्तकों से वस्तु की उपस्थिति का ज्ञान-बोध अर्जित करता है, यह प्रथम चरण है, पुन: प्रत्यक्ष द्वारा उपरोक्त प्रथम चरण
के ज्ञान का सत्यापन द्वारा वस्तु-रूप-ज्ञान की बोध-प्रक्रिया पूर्ण होती है । उपरोक्त
वर्णित वस्तु-रूप-ज्ञान-प्रक्रिया ही प्रत्येक व्यक्ति का नित्य का अनुभव है, नित्य का अभ्यास है, लोकव्यवहार है, व्यक्ति का ज्ञान-क्षेत्र है । परन्तु आत्म-ज्ञान उपरोक्त वर्णित
ज्ञान-प्रक्रिया की परिधि से परे होता है । आत्मा का साक्षात् सम्भव नहीं है ।
शास्त्र-प्रमाण उपरोक्त वर्णित सामान्य ज्ञान-प्रक्रिया को लांघते हुये विलक्षण
विधि से जिज्ञासु को उसकी आत्मा का ज्ञान-बोध कराते हैं । उपरोक्त कथित विलक्षण
विधि ही गुरू के उपदेश का आधार होती है । ..... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें