ज्ञान-स्वरूप


पद-परिचय-सोपान
ज्ञान-स्वरूप सूर्य के प्रकाश को देखने के लिये किसी अतिरिक्त अन्य प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है । ज्ञान-स्वरूप आत्मा के ज्ञान-बोध के लिये किसी अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है । प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही यह जानता है कि, “मैं हूँ” । आत्मा स्वयं अपना ज्ञान-बोध कराती है । प्रश्न किया जायेगा कि फिर व्यक्ति को अज्ञानी क्यों कहा जाता है ? उत्तर है कि व्यक्ति की आत्मा “सत्-चित्-आनन्द” है, और व्यक्ति उपरोक्त कथित आत्मा के केवल चित् अंश को जानता है, तथा सत् अंश के रूप में भ्रान्ति ज्ञान अपनी स्थूल-सूक्ष्म-कारण-शरीर को जानता है, तथा आनन्द अंश से पूर्णतया अनभिज्ञ है । उपरोक्त वर्णित अनभिज्ञता और भ्रान्ति के कारण व्यक्ति अज्ञानी है । व्यक्ति को जगत् के वस्तु-रूप-ज्ञान-बोध भी वस्तु-रूप-वृत्ति में आत्मा के वेध के फल से ही सम्भव होती है । इसलिये आत्मा ज्ञान-स्वरूप है । ..... क्रमश:

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साधन-चतुष्टय-सम्पत्ति

चिदाभास

निषिद्ध-कर्म