मोक्ष
पद-परिचय-सोपान
मोक्ष अज्ञान
से आच्छादित व्यक्ति परिच्छिन्नता की अनुभूति से ग्रसित होता है । परिच्छिन्नता को
पूर्ण बनाने के प्रयत्न में पुरुषार्थ करता है । अर्थ की प्राप्ति होने पर, अर्जित धन को असुरक्षित अनुभव करता है । उसे सुरक्षित करने का पुरुषार्थ
करता है । परन्तु उपरोक्त वर्णित व्यक्ति के दोनो ही पुरुषार्थ, नामत: परिच्छिन्नता को पूर्णता में परिणय हेतु तथा असुरक्षित को रक्षित
करने का पुरुषार्थ, मोंह-बन्धनकारी हैं । उपरोक्त के विपरीत ज्ञान की दशा पूर्णता
की अनुभूति है । यदि अर्थ-काम का अभाव है, अथवा अर्थ-काम की प्रचुरता है, दोनो ही दशायें
उसके लिये मोंह-बन्धन से परे हैं । यह स्वतन्त्रता की दशा है । यह पूर्णता की दशा
है । यह समत्व की दशा है । यह मोक्ष है । ..... क्रमश:
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