जीवन-मुक्ति
पद-परिचय-सोपान
जीवन-मुक्ति व्यक्ति का व्यवहारिक जीवन सदैव जगत् के विषयों के अधीन रहता है ।
परन्तु व्यक्ति के मानसिक क्लेष यद्यपि कि बाह्यतौर पर जगत् के विषयों से ही आहरित
होते हैं, फिरभी उनका वास्तविक उद्गम व्यक्ति के
अज्ञान के फल से होता है । इसलिये ज्ञान की दशा में, व्यक्ति के बौद्धिक उत्कर्ष द्वारा उसके मानसिक क्लेष की स्थिति का
निवारण होता है । व्यक्ति के व्यवहारिक जीवन के आभाव, असुरक्षा उसके लिये मानसिक क्लेष का निमित्त नहीं रह जाते है । व्यक्ति
जगत् की परिस्थितियों में रहते हुये भी, उन परिस्थितियों
से जनित होने वाले मानसिक विक्षेपों से मुक्त जीवन यापन की दशा का भोग करता है ।
यह जीवन-मुक्ति है । ..... क्रमश:
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें