गुण-विभाग-वर्ण-व्यवस्था
पद-परिचय-सोपान
गुण-विभाग-वर्ण-व्यवस्था जब भी समाज के वर्ग का विभाजन व्यक्ति के गुणों पर किया जायेगा, उसे वर्ग-विभाग पद से वर्णन किया जाता है । गुणों के विचार में सात्विक
गुण सदैव निर्विवादित सर्वोपरि हैं । सात्विक-गुण ज्ञान को निरूपित करता है ।
उपरोक्त कथित निश्कर्ष से, एकान्तवासी स्वभाव, स्वाभाविक सन्यास का भाव, चिन्तन-मनन में संलग्नता, अध्ययन अध्यापन में रुचि यह सात्विक-विभाग है । अत: यह ब्राम्हण-विभाग
है । समाज को गतिशील बनाना, रज़ो-गुण का क्षेत्र है, जिसे कि उपरोक्त-कथित वर्ग-विभाजन के विचार में द्वितीय वरीयता का माना
जाता है । उपरोक्त-कथित रजो-गुण पर आधारित विभाजन को दो खण्डों में नामत:
नि:स्वार्थ उद्यम और स्वार्थ-आधारित-उद्यम में विभक्त किया जाता है । उपरोक्त कथित
नि:स्वार्थ-उद्यम-विभाग को क्षत्रीय पद प्रदान किया जाता है । उपरोक्त कथित स्वार्थ-आधारित-उद्यम-विभाग को वैश्य पद
प्रदान किया जाता है । तमो-गुण जो कि प्रमाद का प्रतीक है वह शूद्र वर्ग के पद नाम
से विख्यात है । विचाराधीन गुण-विभाग पुष्टतम् एवं स्वस्थ विभाजन आधार है । .....
क्रमश:
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