ज्ञान-निष्ठा
पद-परिचय-सोपान
ज्ञान-निष्ठा व्यक्ति अज्ञान के फल से परिच्छिन्न है । व्यक्ति का स्वरूप उसकी आत्मा
पूर्ण है । परिच्छिन्नता की अनुभूति के फल से व्यक्ति अपने लोक-व्यवहार के जीवन
में मानोवेगों यथा राग, द्वेष, काम, क्रोध की पीडाओं का भोक्ता होता है ।
ज्ञान की दशा एक बौद्धिक स्थिति है । ऐसी बौद्धिक स्थिति जिसमें व्यक्ति
परिच्छिन्नता से ऊपर उठ पूर्णता की अनुभूति करता है । अत: ज्ञान की दशा में
व्यक्ति का मस्तिष्क उपरोक्त कथित मनोवेगों से मुक्त दशा को प्राप्त होता है । इस
रूप में यह मनोवेगों से स्वतन्त्र मस्तिष्क की दशा है । व्यक्ति के जीवन के क्लेष
यथा आभाव, असुरक्षा उसके लिये मानसिक पीडा का
निमित्त नहीं रह जाते है । उपरोक्त कथित अज्ञान जनित मानसिक मनोवेगों और उनके दु:प्रभाव से मुक्त, मानसिक स्वतन्त्रता की दशा ज्ञान-निष्ठा है । ..... क्रमश:
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