पुराण-ग्रन्थ


पद-परिचय-सोपान
पुराण-ग्रन्थ पुराणों में भी विषय वेदों के ही लिये गये हैं, परन्तु उपदेशों और आदेशों का विस्तार अति-वृहद् किया गया है । यथा, वेद उपदेश है,सत्यम् वद्” और इस वेद आदेश का विस्तार सम्पूर्ण “हरिश्चन्द्र पुराण” है । उपरोक्तानुसार ही अन्य अट्ठारह पुराणों में भी वेद के उपदेशों और आदेशों का विस्तार निहित है । समस्त अट्ठारह पुराणों में “भागवद्-पुराण” की ख्याति सर्वाधिक है । पुराणों के विषय में कहा जाता है कि यह प्राचीनतम ग्रन्थ है, फिरभी इनमें निहित उपदेशों की सार्थकता आज़ के ईक्कीसवीं सदी में भी उतनी ही प्रभावी और सत्य पायी जाती हैं जितना कि अनादिकाल में थी । उपरोक्त कथित गुणवत्ता, उन पुराणों के रचयिता ऋषियों की अद्भुद् मानसिक क्षमता का परिचायक है । पुराणों में भी वेद उपदेशों को ही वर्गीकृत किया गया है और उनका प्रचुर विस्तार भी किया गया है । ..... क्रमश: 

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