ज्ञान-यात्रा-मस्तिष्क-आश्रित
पद-परिचय-सोपान
ज्ञान-यात्रा-मस्तिष्क-आश्रित सम्पूर्ण
ज्ञान-यात्रा का मस्तिष्क आश्रय है । ज्ञान-बोध मस्तिष्क में ही होता है ।
मस्तिष्क ही लोक-व्यवहार में भी रत् है । इसलिये ज्ञान-यात्रा में मस्तिष्क का
सन्सकार अति-महत्व-पूर्ण प्रकरण है । ज्ञान और अहंकार
दोनो प्रकाश और अंधकार सदृष्य बिलकुल एक दूसरे से विलक्षण अवयव हैं । दोनो का
आश्रय-स्थल मस्तिष्क ही है । इस आलोक में विवेक जो कि मस्तिष्क का धर्म है, की
अति-महत्व-पूर्ण-भूमिका है । ज्ञान अहंकार दोनो का पोषण एक साथ नहीं सम्भव है ।
ज्ञान पारमार्थिक सत्य है । अहंकार मात्र भ्रान्ति है । अहंकार का कोई अस्तित्व नहीं
होता है ।
अहंकार बन्धन है । ज्ञान मुक्ति है । अहंकार जन्म-मृत्यु का चक्र है ।
ज्ञान अमृत तत्व की प्राप्ति है । प्रत्येक व्यक्ति को उपरोक्त दो पहलुओं में
चुनाव का स्वतन्त्र अधिकार है | .........क्रमश:
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