अव्यवहार्य-आत्मा
पद-परिचय-सोपान
अव्यवहार्य-आत्मा जगत् लोकव्यवहार है । आत्मा किसी भी दशा में व्यवहार में सम्मलित नहीं
होती है । असंग-आत्मा सर्वत्र व्याप्त होते हुये भी, किसी से लिप्त
नहीं है । शास्त्रों में आत्मा के लिये कहा गया है, “आप्नोति इति
आत्मा” जो सर्वत्र व्याप्त है, वह आत्मा है । लोकव्यवहार माया क्षेत्र
है । आत्मा का लोक-व्यवहार से कोई संसर्ग नहीं है । आकाश सर्वत्र है । परन्तु आकाश
सदैव असंग है । ..... क्रमश:
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