आत्म-ज्ञान-त्रिकुटी-रहित
पद-परिचय-सोपान
आत्म-ज्ञान-त्रिकुटी-रहित वस्तु-रूप-ज्ञान में प्रमाता-प्रमाण-प्रमेय त्रिकुटी, ज्ञान-अनुभव को सम्भव कराते हैं । परन्तु उपरोक्त कथित ज्ञान-प्रक्रिया
से विलक्षण, आत्म-ज्ञान के प्रकरण में, प्रमाता-प्रमाण-प्रमेय के तीनो अवयव स्वयं आत्मा ही होती है । उपरोक्त
वर्णित स्थिति की मानसिक ग्राह्यता ही गूढ है । आत्मा ही, ज्ञान-विषय, ज्ञान-प्रमाण, ज्ञान-वस्तु तीनो अवयव स्वयं होती है । उपरोक्त उपदेश की विलक्षण
प्रस्तुति वृहदारण्यक उपनिषद के पुरुषविधि ब्राम्हणम् में की गई है । ..... क्रमश:
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