आत्मा-ज्ञान-स्वरूप
पद-परिचय-सोपान
आत्मा-ज्ञान-स्वरूप जड उत्पत्ति है । चेतन
आधार है । जड जगत् का विस्तार है । चैतन्य आत्मा है । अहंकार भ्रान्ति है । माया-कल्पित-जगत्
का जीव चेतन-वद् आचरण करने वाला यन्त्र मात्र है, जिसके चेतना की शासक
उसकी आत्मा है और उसके गतियों की शासक प्रकृति है, जो कि स्वयं माया-शक्ति
है । आत्मा-माया-शक्ति यह मिथ्या जगत् की अनुभूति कराते हैं । जगत् की अनुभूति
मात्र प्रातिभासित हैं । उपरोक्त कथित अनुभवों में कोई सत्यत्व का आधार नहीं है । उपरोक्त
कथित अनुभव स्वप्नवद् मिथ्या बोध हैं । उपरोक्त कथित मिथ्यात्व बोध, जागृत दशा की प्राप्ति पर ही सम्भव होती है । जागृत-दशा आत्म-ज्ञान की दशा है
। ..... क्रमश:
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