अ-पौरुषेय-शास्त्र-प्रमाण


पद-परिचय-सोपान
अ-पौरुषेय-शास्त्र-प्रमाण वेद का उद्भव स्वयं नारायण के श्रीमुख से उपदेश द्वारा बताया जाता है । वेद अ-पौरुषेय हैं । वेद उपदेश, व्यक्ति की आत्मा की छवि को, उसे एक दर्पण के सदृष्य, बोध कराते हैं । व्यक्ति की आँखे, समस्त जगत् के वस्तु-रूप के रूप-रंग का ज्ञान-बोध कराती हैं, परन्तु स्वयं अपने रूप-रंग का ज्ञान-बोध नहीं करा सकती हैं । व्यक्ति को अपनी आँख का रूप-रंग बोध करने के लिये किसी बाह्य-उप-करण यथा दर्पण का प्रयोग, करने से ही, अपनी स्वयं की आँख का रूप-रंग बोध सम्भव होता है । उपरोक्त वर्णित दृष्टान्त के सदृष्य ही, व्यक्ति की आत्मा के प्रसाद द्वारा ही व्यक्ति को जगत् के समस्त-वस्तु-रूप-ज्ञान- बोध सम्भव होते हैं, फिर भी व्यक्ति अपनी आत्मा का ज्ञान-बोध नहीं कर सकता है । वेद के उपदेश, व्यक्ति की आत्मा का क्षवि-बोध एक दर्पण के समान कराते हैं । ..... क्रमश:  

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